मेरी एक लघु कविता आप सबों के लिए
" मन से बढ़कर दूजा कोई मंदिर नहीं ,
प्रेम से बढ़कर दूजा कोई कर्म नहीं ,
जिस भी रूप में ध्यावों इश्वर को ,
दिखेंगे उसी रूप में वें हमको ,
दुर्लभ प्रभु चरण रज को भी मनुष्य न पा सका ,
क्योंकि है हर प्राणी इस जग में मात्र एक तिनका ,
निर्मल ह्रदय में बसते हैं प्रभु के प्राण ,
भक्ति पर मानव तुम करना न अभिमान " [ अनिल ]
एक लघु कविता - रचना व प्रस्तुति : अनिल कुमार झा [ २४/०८/२०११ ]